प्रतिबंधों के बावजूद, रूस भारत का रहा बड़ा व्यापारिक साझेदार

प्रतिबंधों के बावजूद रूस से कच्चे तेल की खरीद के में वृद्धि हुई है. जिससे भारत का रूस से आयात का बिल पिछले साल की तुलना में इस अप्रैल तक 3.5 गुना बढ़कर $2.3 बिलियन का हो गया है. यह आंकड़ा वाणिज्य मंत्रालय ने साझा किया है.

इस साल के अप्रैल तक रूस से भारत को कच्चे तेल का आयात $1.3 बिलियन का था. जो कि रूस से भारत को आयातित सभी वस्तुओं के मूल्य का 57 फीसदी है. अप्रैल महीने के दौरान अन्य प्रमुख आयातित वस्तुओं में कोयला, सोयाबीन और सूरजमुखी का तेल, उर्वरक और हीरे इत्यादि शामिल थे.

अप्रैल महीने में इराक, सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात (UAE) के बाद रूस भारत के लिए चौथा सबसे बड़ा क्रूड ऑयल का आपूर्तिकर्ता देश रहा है. जहां तक ​कुल आयात का संबंध है, तो रूस अप्रैल में भारत का छठा सबसे बड़ा निर्यातक देश रहा है. अगर पिछले साल इसी महीने अप्रैल की बात की जाये तो इस दौरान, रूस भारत के लिए कच्चे तेल का 7वां सबसे बड़ा निर्यातक देश था और कुल वस्तुओं के निर्यात के मामले में 21वां बड़ा निर्यातक देश था.

अगर निर्यात और आयात दोनों की बात करें तो अप्रैल में रूस भारत का 9वां सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार था. व्यापार $ 2.42 बिलियन डॉलर का रहा. यह तब भी है. इस महीने के दौरान रूस को भारत से निर्यात की जाने वाली शीर्ष वस्तुओं में विद्युत मशीनरी और उपकरण, लोहा और इस्पात, दवा उत्पाद, समुद्री उत्पाद और ऑटोमोबाइल घटक शामिल थे.

यूक्रेन पर रूस के आक्रमण के बाद से रूस से भारत को कच्चे तेल का आयात बढ़ रहा है. इस आक्रमण के बाद से अमेरिका और उसके सहयोगियों द्वारा रूस पर कई आर्थिक प्रतिबंध लगाए गए. जिससे देश को वैश्विक व्यापार से अलग करने का प्रयास किया गया और इसके परिणामस्वरूप वस्तुओं की कीमतों भारी वृद्धि देखी गई है.

पश्चिमी देशों के दबाव के बावजूद, भारत ने एक पक्ष नहीं चुना और उसने रूस के साथ अपने ऐतिहासिक संबंधों को देखते हुए एक तटस्थ रुख बनाए रखने का फैसला किया. आर्थिक प्रतिबंधों के बावजूद रूस के साथ व्यापार जारी रखने के लिए भारत की भी खूब आलोचना की गई. भारत विभिन्न वैश्विक प्लेटफॉर्म पर अपने रुख का बचाव करता रहा है कि पेट्रोलियम उत्पाद पश्चिमी देशों द्वारा प्रतिबंधों के दायरे में नहीं आते हैं और नई दिल्ली ने हमेशा अपने ऊर्जा स्रोतों में विविधता लाने की कोशिश की है.

विदेश मंत्री एस जयशंकर ने अप्रैल में भारत-अमेरिका 2 + 2 मंत्रिस्तरीय वार्ता के लिए एक संवाददाता सम्मेलन के दौरान भी अपने पक्ष को मजबूती से रखा था.

वहीं वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल ने पिछले महीने वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम में कहा था कि भारत अपने जरूरतों को ध्यान में रखकर फैसला लेता है. इसलिए भारत का हित किसी भी अन्य देश के दबाव से प्रभावित नही होगा.

Write a comment ...

रोहित 'रिक्की'

लिखना है