भारत से निकल रहे निवेशक?

मार्केट और अर्थव्यवस्था को करेगा नकारात्मक प्रभावित?


भारत के डिपॉजिटोरिज(NSDLएंड CSDL) के आंकड़ों के अनुसार फ़ॉरेन पोर्टफोलियो इन्वेस्टर(FPI) वर्ष 2022 में अब तक सबसे अधिक 1.81 लाख करोड़ रुपये भारतीय एक्विटी बाजार से निकाल चुके हैं (NET OUTFLOW). जिसमें से केवल 1 से 10 जून के बीच इक्विटी से 13,888 करोड़ रुपये की निकासी हुई है गौर करने वाली बात यह है कि FPI निवेशक अक्टूबर 2021 से ही धीरे धीरे भारतीय बाजार से अपने पैसे निकाल रहे हैं.

आगे बढ़ने से पहले हम FPI निवेशक के बारे जान लेते हैं. इसके अंतर्गत कोई विदेशी निवेशक भारतीय शेयर मार्केट में एक्विटी शेयर या बॉन्ड में अपने पैसे लगाता है जिससे उनको कंपनी से लाभांश मिलता है. लेकिन यहाँ निवेशक को किसी कंपनी के एक्विटी में निवेश करने के बावजूद कंपनी में कोई अधिकार नही मिलते हैं मसलन वोटिंग राइट इत्यादि. ऐसे निवेशकों का कंपनी के साथ अज्ञात संबंध होता है.

लगे हाथ हम यहीं पर हम डिपॉजिटरी को समझ लेते हैं. दरअसल डिपॉजिटरी एक ऐसी जगह की तरह होता है जहां एक निवेशक अपने शेयर या बॉन्ड को इलेक्ट्रॉनिक रूप में रखाता है. डिपॉजिटरी की तुलना एक बैंक से भी की जा सकती है. जहां निवेशकों को एक अकाउंट खुलवाना पड़ता है, जहां निवेशक अपने शेयर या बॉन्ड को अनलाइन रूप से रखता है जिससे लेनदेन सुरक्षित और आसान होता है.

पुनः मुद्दे पर आते हैं विदेशी निवेशकों की निकासी पर जियोजित फाइनेंशियल सर्विसेज के रिसर्च प्रमुख विनोद नायर ने कहना है कि हाल फिलहाल में आगे भी एफपीआई निवेशक भारतीय बाजार से पैसे निकलेंगे. लेकिन मध्यम अवधि के दौरान हो सकता है कि निकासी कम हो.

अब समझते हैं की ऐसा क्यों हो रहा है? अगर हम ध्यान से समझने की कोशिश करें तो सबसे प्रमुख कारण महंगाई का तेजी से बढ़ना, क्रूड ऑइल सहित कई प्रकार के खाने की चीजों के दाम मे बढ़ोतरी इनकी आपूर्ति में कमी, रिजर्व बैंक सहित विश्व के कई देशों केन्द्रीय बैकों का ब्याज दर में बढ़ोतरी और आर्थिक मंदी की बनती स्थिति जिम्मेदार है.

वैश्विक बाजारों में खासकर अमेरिका में रिकॉर्ड महंगाईदर्ज की गई है जो की पिछले 40 सालों में सबसे अधिक 8.6 फीसदी है. ट्रेडस्मार्ट के चेयरमैन  विजय सिंघानिया ने कहना है कि कोविड-19 के कारण चीन मे फिर से लॉकडाउन के कारण निवेशकों पर दबाव पड़ा, जिसके कारण भी निवेशक बाजार से अपने पैसे निकाल रहे हैं.

इसके अलावा भारतीय रिजर्व बैंक ने भी लगातार दो बार अपने  रेपो दर में 40 और 50 आधार अंकों की वृद्धि की है ताकि महंगाई पर काबू पाया जा सके. साथ ही अपने मुद्रास्फीति अनुमान को फिर से संशोधित करके 6.7 फीसद रहने का अनुमान लगाया है. जिससे बांड निवेश करने पर लाभ कम मिलेगा. इन सभी कारणों से विदेशी निवेशक भारत से अपने निवेश कम कर रहे हैं.

इक्विटी के अलावा, FPI निवेशकों ने अभी जून 2022 तक बॉन्ड या डेट सिक्युरिटी मार्केट से भी 600 करोड़ रुपये से अधिक की निकासी कर चुके हैं, जो की फरवरी से लगातार धीरे धीरे अपने निवेश को निकाल रहे हैं.

यहाँ भी हम थोड़ा बॉन्ड  के बारे में जान लेते हैं. दरअसल जब कोई निवेशक बॉन्ड में निवेश करता है तो उसे एक निश्चित मात्रा में ब्याज मिलता है क्योंकि बॉन्ड में निवेश करना एक प्रकार से कंपनी को ऋण देना होता है.

मॉर्निंगस्टार इंडिया के एसोसिएट डायरेक्टर- मैनेजर रिसर्च हिमांशु श्रीवास्तव का कहना है कि अमेरिका का केन्द्रीय बैंक बॉन्ड पर भारत से ज्यादा ब्याज दर ऑफर कर रहा है इसलिए भारतीय बॉन्ड मार्केट अब उतना आकर्षक नही रहा इसलिए निवेशक अपने निवेश निकाल रहे हैं.

यहाँ ध्यान देने वाली एक और बात है कि निवेशक केवल भारत से ही नही बल्कि भारत के साथ-साथ ताइवान, दक्षिण कोरिया, थाईलैंड और फिलीपींस सहित अन्य उभरते बाजारों में से भी भारी मात्रा में FPI इन्वेस्टर अपने पूंजी निकाल रहे हैं

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रोहित 'रिक्की'

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