मुल्लापेरियार बाँध मुद्दा, विवाद, संभावित समाधान: व्याख्या

मुल्लापेरियार बांध केरल और तमिलनाडु के बीच दशकों से विवाद का विषय रहा है। यह बांध केरल के पेरियार नदी पर स्थित है, लेकिन इसका पूरा नियंत्रण तमिलनाडु के पास है। जो कि तत्कालीन त्रावणकोर के महाराजा और ब्रिटिश सरकार के बीच के एक संधि का परिणाम है। जो सन 1886 में हुई थी। इस संधि में यह प्रावधान हुआ कि तमिलनाडु को बांध में संचित पूरे पानी के उपयोग का अधिकार 999 साल के लिए मिलेगा। बांध को सन 1895 में बनाया गया और बांध से संबधित सभी अधिकार तमिलनाडु के पास सुरक्षित कर दिये गए

बांध की स्थिति

विवाद के जड़ की पड़ताल करें तो इस पर केरल का कहना कि बांध 129 साल पुराना हो चुका है। इसलिए यदि बांध कभी टूट जाता है तो केरल के इदुक्की जैसे जिले डूब जायेंगें। अतः उसकी मरम्मत और पुनः निर्माण की आवश्यकता है। दूसरी ओर तमिलनाडु का कहना है कि बांध सही है, मरम्ममत और नये बांध की जरूरत नहीं है। और पानी संचयन क्षमता को 139 फीट जो अभी तक होता रहा है, से बढ़ाकर 142 फीट तक करना चाहिए। जो की सन 2014 में सुप्रीम कोर्ट के आदेश अनुसार है। क्योंकि वर्तमान में संचित पानी से तमिलनाडु की जरूरतें पूरी नहीं होती हैं। जिससे तमिलनाडु के कई जिलों को सूखे का सामना करना पड़ता है।

मामला सुप्रीम कोर्ट में

यह विवाद तब सुप्रीम कोर्ट में तब पहुँच गया जब केरल सरकार ने 2006 में राज्य के सिंचाई और जलसंरक्षण अधिनियम-2003 में संशोधन किया और मुल्लापेरियार बांध को संकटमय श्रेणी में डाल दिया। साथ ही बांध में 139 फीट तक ही पानी को सीमित करने का भी प्रावधान किया और 2007 में केरल की कैबिनेट ने एक नए बांध पर कार्य करने की अनुमति भी दे दी। अब तमिलनाडु को लगा कि यह संधि के प्रावधानों, कोर्ट के आदेश और उसके अधिकार क्षेत्र का उल्लंघन है। इसलिए तमिलनाडु, केरल सरकार के खुलाफ़ सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया और मामले को चुनौती दी। उनके बाद से लगातार मामले की सुनवाई चल रही है। इसी सिलसिले में सुप्रीम कोर्ट ने एक पर्यवेक्षणीय समिति का गठन किया। इस समिति ने बांध में पानी के संचयन को कोर्ट के आदेश 142 फीट से कम करके 139 फीट तक रखने का सुझाव दिया है। और कोर्ट ने समिति के सुझाव को मान लिया है।

बांध की पानी की ऊंचाई

हाल फिलहाल में सुप्रीम कोर्ट ने इस संबंध में एक महत्वपूर्ण आदेश दिया है। कोर्ट ने केंद्र सरकार, केरल और तमिलनाडु सरकार पर्यवेक्षण समिति में एक-एक विशेषज्ञ शामिल करने को कहा है। इसके साथ ही कोर्ट ने कहा है कि बांध की सुरक्षा और इसमें सुरक्षित कामकाज सबसे अहम है। कोर्ट ने कहा कि इस बांध से संबंधित सारी कार्यकारी शक्तियां तब तक देखरेख समिति के पास ही रहेंगी जब तक बांध सुरक्षा प्रधिकरण का कामकाज शुरू नहीं हो जाता। इस प्राधिकरण की बात बांध सुरक्षा अधिनियम-2021 में की गयी है जो पूरे देश के बांधों के देखरेख के लिए जिम्मेदार होगा।

मुल्लापेरियार बांध का बेसिन एरिया

कोर्ट ने ये भी कहा कि इस संबंध में देखरेख समिति बहुत अच्छा काम कर रही है। कोर्ट ने अपने आदेश में यह भी कहा है कि इस पूरे विवाद के लिए राज्यों के मुख्य सचिव जिम्मेदार हैं। क्योंकि उन्होंने देखरेख समिति के निर्देशों पर अमल नहीं किया। कोर्ट ने इस बात पर भी जोर दिया है कि देखरेख समिति की सिफारिशों और निर्देशों पर दोनों राज्यों की ओर से अमल और समिति के साथ पूरा सहयोग करना जरूरी है। जब तक कि बांध सुरक्षा प्राधिकरण का कामकाज शुरू नहीं हो जाता। हाल में कोर्ट के आदेश का सबसे महत्वपूर्ण पहलू यह है कि बांध देखरेख समिति के आदेशों और निर्देशों पर अमल में नाकामी और लापरवाही को कोर्ट की अवमानना माना जाएगा। उसी मुताबिक लापरवाह राज्य सरकार के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई भी की जाएगी।

भारत के प्रमुख बांध

मुल्लापेरियार बांध सहित अन्य महत्वपूर्ण बांधों के विवादों के समाधान करना बहुत जरूरी है इसलिए बांध से संबंधित राज्यों की चिंताओं को केंद्र में रखकर हल ढूढ़ने की जरूरत है। विशेष रूप से मुल्लापेरियार बांध की बात करें तो केरल की सुरक्षा चिंता और तमिलनाडु की जल की उपलब्धता को लेकर चिंता पर गहन विचार की जरूरत है। इस संबंध में एक समाधान यह भी हो सकता है कि तमिलनाडु एक और नया जलाशय बनाकर अतिरिक्त जल को संचित कर सकता है। पास के वैगई नदी पर स्थित बांध की क्षमता को बढ़ाया जा सकता है। या फिर अतिरिक्त टनल का निर्माण किया जा सकता है, जिससे तमिलनाडु के माँग के अनुसार पानी मिल सके।

रोहित कुमार पटेल(आईआईएमसी दिल्ली)

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